Monday, December 28, 2009

बैलगाड़ी की सवारी

शहरों में सफर पेट्रोल वाहन चालित ही होते हैं । जिससे विषैली गैसों का उत्सर्जन होता है । आज पूरा जग ग्लोबलवार्मिंग की चपेट में है । कोपनहैगन में विकसित-विकासशील देशों की ग्रीन गैस उत्सर्जन के मुद्दे पर बैठक राजनीति के कारण विफल हो गयी । भविष्य को हम क्या देगें ?समस्या सोचनीय है । सामाजिक दृष्टिकोण से सोचा होता तो कुछ हल भी निकलता .

आज इसी समस्या का थोड़ा हल नजर आया ,जब मैं वाशी के सब्जी बाजार से तरबूजों से भरी बैलगाडी में बैठ कर घर आई .जो मैने कभी सोचा भी नही था कि५५ वर्ष में अचानक बैलगाडी की सवारी करूंगी .इसी तरह कीगाँव में सवारी मैंने बचपन में दस साल की आयु में की थी ,तब से ज्यादा मजा आज लगा । अनुभव अविस्मरणीय लगा । किस तरह बैलगाडी का चालक अंसारी ट्रेफिक सिगनल पर बैलों को छड़ी से हांकता हुआ पार करके मेरे निवास स्थान पर लाया ।धीमी -धीमी चाल में हिचकोले खाते हुए बैल अपने मालिक अंसारी के इशारों का आज्ञा पालक की तरह चले जा रहे थे ।
उससे मैंने दो तरबूज खरीदे थे ।इसलिए उससे मित्रता का रिश्ता जुड़ -सा गया था । तरबूजों का वजन ज्यादा हो गया था । मुझे से उठाये नहीं जा रहे थे । वह बोला , " आप कहाँ रहते हैं ?" मैंने उसे अपना पता बताया । उसने कहा-"मैं उसी तरफ जा रहा हूँ । आप को छोड़ दूंगा . " मेरे चेहरे पर मुस्कान की लहर अवतरित हुई .
मुझे भी उसका प्रस्ताव मनपंसद लगा । मैंने उसे हाँ कह दिया । क्योंकि मुझे बैलगाडी का लुत्फ़ लेना था । सफर में बैलों के गले की घंटी का टून -टून का मधुर संगीत कर्ण प्रिय लग रहा था ।
पेट्रोल चालित वाहनों की तुलना में इसकी गति कम थी । लेकिन इससे पर्यावरण को प्रदूषण का खतरा नहीं है । क्यों ना बैलगाड़ी ,सायकिल जैसी कार्बनडाई आक्साइड उत्सर्जन रहित वाहनों का प्रयोग करें .
ग्लोबलवार्मिंग को कम करने के लिए सकारात्मक कदम साबित होगा ।

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