Wednesday, January 27, 2010

फरियाद

मेरे मालिक !तेरे दरबार में ,
करूं बार - बार फरियाद मैं ।
मानव में उदय हो मानवतावाद ,
न होगा फिर आतंक का नामोनिशान .

Monday, January 25, 2010

सूरत

जब - जब तुम मुझ से बिछुड़ते हो ,
तब -तब तेरी सूरत सूरज -चाँद -सी साथ निभाती है .

Wednesday, January 13, 2010

पयाम -आज का शेर

कभी हवाओं से ,कभी मेघदुतों से वियोग का पयाम भेजा है ,
बेखबर रूखे महबूब ! रुसवाई की भनक भी हुई क्या ?

Tuesday, January 12, 2010

आज का शेर गिला

हमें नहीं तुम से नहीं कोई गिला ,
तुम्हें देख कर मन फूल -सा खिला

Thursday, January 7, 2010

शरारत

आज का शेर है-
उनकी अदाओं की शरारत ने घायल किया ,
अरे ! हम तो उन्हें दिल दे बैठे ।

प्रकाश उत्सव का नगर कीर्तन

'नगर कीर्तन का प्रकाश उत्सव' दीयों की रोशनी का प्रकाश पर्व नहीं है । जिसमें धन के लिए लक्ष्मी की पूजा की जाती है । यह तो महापर्व सिखों का ही नहीं बल्कि पूरे जग के मानवों के लिए है । जिसमें सदवृतियों ,मानवीय मूल्यों ,सकारात्मक सोच का आलोक गान है ।

नगर कीर्तन का शाब्दिक अर्थ करे तो नगर का अर्थ शहर है । कीर्तन का अर्थ - ईश्वर के नाम का भजन जिसको लोग नगर की सड़कों , गलियों में घूम -घूम कर गाते हैं । इसका व्यापक रूप हमें भारत में ही क्या ,विश्व में भी दिखाई देता है । जब सिखों के गुरु गुरु नानक , गुरु गोविन्द सिंह का( जन्म दिन ) प्रकाश उत्सव आता है । जिसमें 'संगत -पंगत 'की उक्ति चरितार्थ होती है । अर्थात इसमें जाति , उपजाति ,धर्म ,अंधविश्वास ,लिंग ,वर्ण भेद असामजिकता ,ईर्ष्या ,जलन , भेद भाव और राजनीति नहीं होती है ।

यह पर्व तो मानव को मानव से जोड़ता है । इसमें व्यक्ति विशेष का गुणगान नहीं होता है । उनके द्वारा रचित ज्ञान 'गुरु ग्रन्थ साहिब ' ईश्वर -मानवीय धर्म का प्रकाश
है ,जिसका उद्देश्य असभ्यता ,अमानवीयता ,अंधकार ,अज्ञान ,अत्याचार ,अनाचर , अनैतिकता ,व्यभिचार , को नष्ट करना है । सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविन्द सिंह जी का ३४३ वां जन्म दिवस पूरे जग में हर्ष -उल्लास से मनाया .

यह परंपरा सदियों से चली आ रही है । इसका साक्षात दर्शन - लाभ मैंने ३.१.१० को गुरु गोविन्द के नगर कीर्तन में देखा । जिसमें जीवन की मर्यादा , संस्कृति , अतीत के मूल्य नये युग ,२१ वीं सदी में परिलक्षित हो रहे थे । नगर कीर्तन दोपहर में मान्टुगा के 'सिटीलाईट गुरुद्वारे'से जिसमें अमीर - गरीब , ऊंच - नीच , छुआछुत , जाति -पांति ,लिंग भेद आदि का भेद भाव नहीं था । पूरे मुम्बई - नवी मुम्बई , से छोटे - बड़े ,बूढ़े , लड़के - लड़कियां , आदमी - औरते सारे गुरु नानक स्कूल के बच्चे अपने गुरूओं के साथ अविरल गति रूप लिए कुछ पैदल , कुछ ट्रकों ,कुछ कारों , स्कूटरों में चले जा रहे थे । धर्म निरपेक्ष ,सर्वधर्म समभाव का नजारा था । भारत की विविधता में एकता की मिसाल थी । भाषा , धर्म , सम्प्रदायों की दीवार नहीं थी । बल्कि हमारे महापुरुषों राम, कृष्ण, बुद्ध, गाँधी, ईसामसीह, आदि के नैतिक मूल्यों के सदृश प्रतिपादित आत्मा के जागरण - नव निर्माण का प्रशस्त आलोक पथ लगा ।
जिस अनमोल सवारी में अमृत तुल्य 'गुरु ग्रन्थ साहिब ' की पवित्र पुस्तक थी । उसको ग्रंथि चंवर झूला रहे थे ।जो सद गुरु जी का साक्षत दर्शन है । उस सवारी से पहले २० - २५ श्रद्धालू स्त्रियां झाडुओं से सड़क साफ़ करती हुईं आगे जा रहीं थीं । जो गुरु सेवा का प्रतीक था । वे २१ वीं सदी की भौतिकता के लिए स्वावलंबन की मिसाल थीं । जहां शर्म नहीं ,कर्मठता - कर्तव्य बोध था । गुरु नानक स्कूल के६८ शाखाओं के विद्यार्थी उत्साह -जोश के साथ मधुर स्वरों में गुरु ग्रन्थ की वाणी भी गा रहे थे । जैसे "जो लरे दीन के हेत सुवा सोए ।" "गुरु गोबिंद बोल माधो ।" यह नजारा श्रधा -गुरु सेवा -भक्ति का अनूठा संगम था .
सारे विद्यार्थी हिंदी ,अंग्रेजी , मराठी , गुरुमुखी में लिखे नैतिक संदेशों के पोस्टरों को हाथों में लिए हुए थे । कुछ बच्चों ने कूड़ेदान भी लिए हुए थे । जो प्रतीक था रास्ते में कोई गंदगी न करे । प्रदूषण मुक्ति का संदेश दे रहे थे ।
अनुशासित व्यवस्था में जगह -जगह प्रसाद के रूप में भरपेट पुलाव , पकौड़े , बिस्कुट और बताशे बंट रहे थे । मैंने भी प्रसाद का लाभ लिया और एक विकलांग को सड़क पार करके प्रसाद दिया । हर कोई खाते -पीते , मुस्कारते , बतियाते , 'गुरु खालसा की फतह ' कहते हुए , सिखी धर्म के 'पांच प्यारे ' सुज्जित तलवार लिए और गतका ( सिख मार्शल आर्ट )का शस्त्रों से चमत्कारी प्रदर्शन करते हुए अपने गंतव्य की ओर' दादर सिंह गुरुद्वारे 'के लिए चले जा रहे थे । सामाजिक सुरक्षा के लिए पुलिस भी थी , किन्तु प्रेम ,सौहार्द , भाईचारे में दंगे की गुंजाइश ही नहीं थी ।
सदभावना का ' प्रकाश उत्सव ' गुरु के दिखाए मार्ग का स्नेह संबंध , आत्मीयता का रिश्ता और मानवीय तत्व को जोड़ रहा था । अंत में "वाहे गुरु जी का खालसा ,वाहे गुरु जी की फतह । "
लेखिका - मंजू गुप्ता ।





Friday, January 1, 2010

नव वर्ष पर सुनीता का स्वागत

आज का शुभ दिन मेरी सहेली के स्वागत से शुरू हुआ .